पण्डित साहब भैरव शंकर जी शर्मा एक ऐसी शख्सियत जिसे युगों-युगों तक याद रखा जायेगा। मेवाड़ी कवि, सुप्रसिद्ध कथा वाचक के नाम से विख्यात पण्डित भैरव शंकर जी शर्मा का जन्म चित्तौड़गढ़ जिले की राशमी तहसील के नेवरिया ग्राम में विक्रमी सम्वत 1989 के चैत्र शुक्ल एकादशी (रविवार) को हुआ। पण्डित साहब भैरव शंकर जी को लोग पण्डित साहब, भैरू पण्डित जी, गुरू महाराज आदि नामों से जानते है। पण्डित जी के मन में बचपन से ही भक्ति का भाव एवं भजनों का चाव था और उनके इसी भाव के कारण उन पर ईश्वर की कृपा हुई जिससे उन्होने ईतनी काव्य रचनाओं के साथ हजारों लोगों को ईश्वर भक्ति से जोड़ा। उनकी इस पारलौकिक सोच एवं उच्च स्तर के आध्यात्मिक कार्याें के कारण कई लोगों ने उनको अपना गुरू बनाया।
पण्डित जी की प्राथमिक शिक्षा नेवरिया में हुई तथा उच्च प्राथमिक/माध्यमिक स्तर की पढ़ाई के लिये पण्डित जी गंगरार आये और गंगरार का एक अभिन्न अंग बन गये। गंगरार में उन्होने राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पढ़ाई के साथ भजनों की रचना और गायन शुरू किया। इस दौरान वे राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के पास स्थित पहाड़ी के ऊपर बने स्वयं प्रकट शयन हनुमान जी के मन्दिर पर जाया करते थे। उनके मन में भक्ति का भाव तो था ही और वहीं हनुमान जी कृपा हुई और एक दिन उनके मन में अपने गांव नेवरिया में पंचमुखी हनुमान जी के नये मन्दिर की स्थापना करने की प्रेरणा जगी।
वे इस प्रेरणा से प्रेरित होकर स्वयं प्रकट हनुमान जी के मन्दिर से ज्योति लेकर चल पड़े और प्रण किया जहां ये ज्योति खण्डित होगी वहां पंचमुखी हनुमान जी की स्थापना करूंगा और जीवन भर उनकी पूजा करूंगा। पण्डित जी ने जो सोचा वही किया, वह ज्योति उस पहाड़ से नीचे उतरने से पहले ही खण्डित हो गई, शायद विधाता को यही मन्जूर था कि पण्डित साहब की कर्मस्थली का श्रेय गंगरार की पावन भूमि को ही मिले।
पण्डित जी के कर-कमलों से उसी पहाड़ी पर पंचमुखी हनुमान जी के भव्य मन्दिर का निर्माण हुआ जो आज भी भक्ति और भजनों के अमर स्तम्भ के रूप में विद्यमान है। पण्डित जी ने जीवन भर कथा वाचन, भजन गायन, भजन संध्याऐं, रामलीला मंचन आदि कई आध्यात्मिक कार्य किये। पण्डित साहब ने अपने जीवन काल में हजारों की संख्या में भजन, कविताऐं छन्द, दोहे, चैपाईयां, कविताऐं, बजरंग बिरदावली आदि की रचना की।
जैसा कि ऊपर बताया गया कि पण्डित साहब ने रामलीला मंचन का कार्य किया और इस हेतु उन्होने बजरंग बाल मण्डल की स्थापना करके गंगरार गांव एवं आसपास के गांवों के कई लोगों को जोड़ा और एक अभूतपूर्व रामलीला का कई दशकों तक सफलतापूर्वक निर्देशन किया। पण्डित साहब के निर्देशन में रामलीला का मंचन ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे कि रामायण के सभी पात्र साक्षात हमारे सामने ही लीला कर रहे हो। ऐसी अद्भुत रामलीला का मंचन श्री पण्डित साहब के जैसी विभूति के निर्देशन में ही सम्भव हो सका। उनकी इसी विलक्षण प्रतिभा के लोग दीवाने थे और इसी कारण से कई लोगों ने उनको अपना गुरू बनाया। और यहीं से शुरू हुई गुरू-शिष्य परम्परा।
इसी गुरू शिष्य परम्परा के तहत पण्डित साहब के हजारो शिष्य हैं और इसी के फलस्वरूप गुरू पूर्णिमा महोत्सव मनाया जाने लगा। शुरूआत में गुरू पूर्णिमा महोत्सव गंगरार गांव में ही मनाया जाता था लेकिन कुछ वर्षाें के बाद शिष्यों के अपार प्रेम और शिष्यों की संख्या अधिक होने के कारण शिष्यों ने गुरूजी (पण्डित साहब) से निवेदन किया कि इस बार गुरू पूर्णिमा महोत्सव हमारे गांव में मनाया जाये। इस कारण कई वर्षों तक गुरू पूर्णिमा महोत्सव अलग-अलग गांवों में मनाया गया। इसी प्रकार रामलीला मंचन, भजन संध्याऐं एवं काव्य रचनाऐं करते हुऐ पण्डित साहब अपना भक्तिमय जीवन भगवान के श्रीचरणों में समर्पित करते हुऐ विक्रमी सम्वत 2056 के भाद्रपद पंचमी (ऋषि पंचमी) मंगलवार को अपनी देह त्यागकर परमधाम को चले गये। पण्डित साहब की याद में आज भी गांव गंगरार में पंचमुखी हनुमान जी का मन्दिर उनकी यादों को संजाये हुऐ है और वहीं पण्डित साहब की संगमरमर से बनी मूर्ति स्थापित है जो आज भी देखते ही उनकी यादों को जीवन्त करते हुऐ देखने वालों के मन को मोहित करती है। आज भी गांव गंगरार में पंचमुखी के दरबार में गुरू पूर्णिमा महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। शिष्यगण धार्मिक आयोजनों/भजन संध्याओं में पण्डित साहब द्वारा रचित भजनों एवं काव्य रचनाओं/कथाओं आदि को बड़े चाव एवं तन्मयता से गाते है। पण्डित साहब द्वारा रचित भजन एवं कथाऐं अत्यन्त भावपूर्ण एवं सारगर्भित है जो कि गाने, पढ़ने, सुनने से मन्त्रमुग्ध कर देती है। जय श्री गुरूदेव
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साभार अनिल बरिया (शर्मा ) गंगरार 7568030560